हम जिस समय को पैसे के हिसाब से देखते थे फिर आंख मुंध कर, हड़बड़ाहट में उठकर अपने कार्यस्थल की ओर चल देते थे। मानो आज अगर 5 मिनट देर हो गई तो ना जाने क्या ही छूट जाए, ना जाने कोनसा वर्ल्ड कप हाथ से निकाल जाएगा, उसी समय के लिए आपने आज खुद रोका है।
रिश्तों को दर किनार ऐसे करते थे जैसे उसकी भरपाई आपके कमाए हुए वो कागज के टुकड़े जिसपर यकीनन सारी दुनिया ही दीवानी थी, कर देंगे। हर उस रिश्ते पर आपने खुद का समय व प्यार की जगह किसी गिफ्ट, पार्टी, दावत को दे दिया था, मानो रिश्ते की एक्सपायरी का रिचार्ज केवल पैसा या उससे जुड़ें तोहफों के बिना कुछ नहीं।
काम का वो जुनून, एक मिनट को एक डॉलर, एक पाउंड मानते चलते थे, जैसे आपकी सांसो को भी आपने अपने लाइफ स्टाइल से खरीद रखा हो, ई एम आई, एस आई पी, बीमा, सेविंग्स, इंवेस्टमेंट्स आदि हमारे पेट भरने के लिए ही हुए करते थे, जैसे इनके बिना खाने में वो मीठे की कामी सी रह गई हो।
हज़ार दफा कोशिश करो पर ये कमबख्त रविवार और वीकेंड जैसे नाम के लिए आते थे और दोस्तो, मूवी, क्लब के अलाव कहीं और जा ही नहीं पाते। वहीं अपने गांव और शहर में रह रहे मां बाप से मिलने के लिए ना जाने आपने कितने तरीके बनाए, पर हर बार ये वीकेंड का एड्रीनलीन आपको इस लाइफ स्टाइल को भूलने ही ना देता था। वो आदर्श पुत्र का स्वप्न कहीं ना कहीं अधूरा और इसका दोष आपने इस जीवन शैली को ही क्यूं ना देते आए हो।
खेत, खलियान, मैदान, चिड़ियों की आवाज़, सनसेट, सनराइज और नदी, तालाब, समुद्र जैसे उस भागदौड़ भारी ज़िन्दगी के हैप्पी मोमेंट्स कहलाते थे जिनको आप फेसबुक पर हेवेन या स्वर्ग कह कर पुकारते हो, पर ये काम धाम की वजह से साल में एक या दो बार ही मौका मिलता। आपके ओर प्रकृति के बीच में वो जो खाई बनती चली गई उसकी दूरी मानो पृथ्वी सूर्य से कम नहीं थी। अपनी ज़िन्दगी की वो खूबसूरत सुबह को देखने आप हज़ारों रुपए खर्च करते और ट्रिप टू मसूरी, नैनीताल, सिक्किम जैसे स्टेटस का स्मरण कर ही खुश होजाते थे और हां, चलो एक आद बार घूम भी आते थे।
पर, ऐसी हज़ार कहानियों के किरदार, मोमेंट्स, जगह, ख्वाब, परिस्थितियां भले ही अलग अलग हो पर बेशक उन सभी कहानियों में अनेकों समानता आप निकाल सकते हैं।
आज वक़्त ओर हालात हमें बहुत कुछ सीखा रहे हैं, सुबह में चिड़ियों कि चह चाहाहट, सूरज की किरण को उगते देखने से ढलते देखना, पसंद का खाना बनाना, पुरानी यादों में दिन बिताना, माता पिता से उनके बचपन के किस्सों को सुनना, अतीत की यादों को संजो कर उसकी कल्पना कर मन ही मन सुखी होना, फुरसत से प्रकृति से संवाद करना, हवा को मेहसूस करना और पसंद कि गीतों, फिल्मों, कहानियों को अपनी किताबों, डायरियों में खोजना, ना जाने क्यूं ये ज़िन्दगी पहली बार रुकी है पर मानो इसके रुकने मात्र से ही हमारे जीवन के कितने अधूरे काम होते से चले गए हो। भला ऐसा पहले कभी हुआ था।
हम जानते हैं ये कुछ समय का सुख है पर मन कहीं ना कहीं इसी को जीवन के रूप में स्वीकारने को व्याकुल सा है, जहां ना कोई गणित, भागदौड़, रुपए पैसे का ताना बाना और समय की पाबंदी हो। चलो जिया जाए इसको, इससे पहले के ये भी बीत जाए। बस मन यूहीं आज़ाद रहना चाहता है।
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