भगवान शिव को सृष्टि का संहारक कहा जाता है। भगवान शिव सभी के देवता माने जाते हैं और यह भी कहा जाता है कि वह आदियोगी हैं। हिंदुओं का सबसे पवित्र महीना सावन मास शुरू हो चुका है जिसमें भगवान शिव की आराधना की जाती है।वैसे तो अलग-अलग मौकों पर भगवान शिव को पूजा जाता है पर भगवान शिव की पूजा सबसे ज्यादा सावन के महीने में ही की जाती है। इसके कुछ पौराणिक सामाजिक कारण है जिसके बारे में हम आपको बता रहे हैं।

शिव पुराण के अनुसार जब समुद्र मंथन किया जा रहा था तो उसमें से हलाहल विष भी निकला था जिससे देव और असुरों सभी में त्राहिमाम मच गया था। उस स्थिति में भगवान शिव ने सभी की रक्षा करने के लिए उस हलाहल विष को पी लिया था। हलाहल विष को पीने के बाद भगवान शिव के शरीर का तापमान काफी बढ़ गया था जिसे कम करने के लिए भक्तों ने उन पर अभिषेक व बेलपत्र चढ़ाना शुरू किया।

सामाजिक कारण
संसार को विनाश से बचाने के लिए जब भगवान शिव ने हलाहल विष को पी लिया था ऐसे में उनका आभार प्रकट करने के लिए महीने भर उनकी उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य जब उपासना में लीन होता है तो समाज में किसी भी प्रकार की बुराई में सम्मिलित नहीं होता।
प्राकृतिक कारण
बारिश होने के कारण जलाशय भरे होते हैं तथा पूजा में इस्तेमाल होने वाले बेलपत्र, धतूरा आसानी से उपलब्ध हो जाता है जो कि भगवान शिव की आराधना के लिए उपयुक्त होता है। साथ ही मौसम के ठंडा होने से भक्त गणों को उपवास रखने में और पूजा पाठ करने में सहायता प्राप्त होती है।
तो यह थे कुछ कारण जिसकी वजह से भगवान शिव की आराधना सावन मास में सबसे अधिक की जाती है