मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी। जो अपने आप में कई संस्कृतियों और खाने-पीने के लजीज पकवानों को अपने अंदर समेटे हुए हैं। इन्हीं सब में मुंबई का नाम आते ही लोगों के दिलो-दिमाग पर सबसे पहले एक ही शब्द आता है जो है, वड़ापाव। मुंबई की मशहूर यह डिश कैसे खोजी गई, कौन थे वह शख्स इन सब के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं।
उबले हुए आलू में प्याज मिर्च चटपटे मसाले इत्यादि का बेसन के घोल में तलकर पांव को दो भागों में काटकर परोसा जाने वाला वडापाव सभी के मुंह का स्वाद बदल देता है और पेट भी भर देता है। आसान दिखने वाली है डिश चंद मिनटों में ही तैयार हो जाती है जो गरमा गरम और पौष्टिक होती है।

कहा जाता है कि आज से 54 साल पहले वर्ष 1966 में अशोक वैद्य नाम के एक व्यक्ति ने वडापाव को बनाया और इसका पहला स्टॉल मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन के बाहर लगाया था।आगे चलकर वर्ष 1970 80 के दौरान जब मुंबई की गई मिले बंद हो गई तो वहां काम करने वाले मजदूरों ने अपनी आजीविका के साधन के तौर पर वडापाव के स्टॉल खोलने शुरू किए इसमें वहां की राजनीतिक पार्टी शिवसेना ने भी मजदूरों की काफी मदद की। उस दौरान दक्षिण भारतीय डिश उडुपी मुंबई में काफी खाया जाता था राजनीतिक तौर पर और वडापाव को मुंबई की पारंपरिक डिश के रूप में पहचान दिलाने के लिए शिवसेना ने काफी प्रोत्साहन दिया।

कैसे मिला था अशोक वैद्य को वड़ापाव बनाने का आइडिया
कहते हैं कि अशोक वैद्य रोजाना हजारों लोगों को काम के चक्कर में अपना नाश्ता और खाना छोड़ते हुए पाया करते थे ऐसे में उन्हें विचार आया कि कोई ऐसी खाने की चीज हो जो जल्द बन जाए, गर्म हो, पौष्टिक हो और सस्ती भी तथा जिसे चलते-चलते खाया जा सके। ऐसे में उन्होंने वडापाव का इजाद किया जिसे आसानी से कागज में लपेट कर खाया जा सकता है जिसमें भारतीय जायका मौजूद था।
बता दें, कि भारत में आलू पुर्तगाली अमेरिका से लाए थे और पाव भी पुर्तगालियों की इजात की हुई खाद्य वस्तु है। इन दोनों वस्तुओं के विदेशी होने के बावजूद भी इनमें भारतीय मसालों का तड़का लगाकर एक पौष्टिक आहार वडापाव के रूप में बनाया गया। जो कि अब मुंबई की पहचान है। भारत के किसी भी शहर में रहने वाला इंसान जब भी मुंबई के बारे में सुनता है वह वडा पाव खाने की इच्छा एक बार जरूर जाहिर करता है।